Residential Status – किसी भी पर्सन पर इनकम टैक्स लगाने के लिए सबसे पहले उसका रेजिडेंशियल स्टेटस पता होना चाहिए। बिना रेजिडेंशियल स्टेटस चेक करे किसी भी पर्सन के इनकम टैक्स की सही कैलकुलेशन नहीं की जा सकती है।
इसलिए इनकम टैक्स एक्ट के अनुसार टैक्स लगाने के लिए सबसे पहले एक पर्सन का रेजिडेंशियल स्टेटस चेक किया जाता है।
इनकम टैक्स एक्ट 1961 के अनुसार Residential Status को 2 टाइप्स में बांटा जाता है –
- रेजिडेंट ( भारत में निवासी )
- नॉन – रेजिडेंट ( भारत में अनिवासी )
Residential Status इंडिविजुअल, HUF, फर्म, कंपनी आदि सभी के केस में हर फाइनेंसियल ईयर में चेक में किया जाता है। इसलिए कोई भी पर्सन एक फाइनेंसियल ईयर में रेजिडेंट और दूसरे फाइनेंसियल ईयर में नॉन रेजिडेंट रह सकता है।
आज के आर्टिकल (Residential Status) में हम इंडिविजुअल, HUF, फर्म, कंपनी आदि के Residential Status से जुड़े रूल्स के बारे में चर्चा करेंगे।
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Residential Status of Individual –
किसी भी इंडिविजुअल को भारत में रेजिडेंट होने के लिए 2 बेसिक शर्तो में से एक बेसिक शर्त पूरी करनी होती है।
बेसिक शर्त (basic condition ) –
- जिस फाइनेंसियल ईयर के लिए Residential Status चेक किया जा रहा है, उस फाइनेंसियल ईयर में इंडिविजुअल 182 दिन या अधिक समय के लिए भारत में रहा हो
या
2. सम्बंधित फाइनेंसियल ईयर में इंडिविजुअल कम से कम 60 दिन भारत में रहा हो और पिछले फाइनेंसियल ईयर से पहले के 4 फाइनेंसियल ईयर में 365 दिन या अधिक समय के लिए भारत में रहा हो
अगर इंडिविजुअल इन दोनों बेसिक कंडीशंस में से एक कंडीशन को पूरा करता है, तो वह भारत में रेजिडेंट और एक भी कंडीशन को पूरा नहीं करता है, तो उसे भारत में नॉन रेजिडेंट माना जायेगा।
नोट : इंडिविजुअल के रेजिडेंशियल स्टेटस के बारे में अधिक जानने के लिए किसी व्यक्ति का residential status कैसे चेक करते है ? देख सकते है।
Residential Status of Hindu Undivided Family (HUF )
किसी भी HUF का रेजिडेंशियल स्टेटस चेक करने के लिए सबसे जरुरी यह देखना है, कि उसका कण्ट्रोल और मैनेजमेंट कहाँ से होता है।
अगर किसी HUF का कण्ट्रोल और मैनेजमेंट पूरी तरह से (wholly ) या पार्टली भारत में होता है, तो इसे भारत में रेजिडेंट माना जायेगा।
और, यदि एचयूएफ का कण्ट्रोल और मैनेजमेंट पूरी तरह से भारत के बाहर होता है, तो इसे भारत में नॉन रेजिडेंट माना जायेगा।
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HUF के रेजिडेंशियल स्टेटस को चेक करने में कर्ता का क्या रोल होता है ?
यदि, कोई भी HUF भारत में नॉन रेजिडेंट है, तो आगे कर्ता का रेजिडेंशियल स्टेटस चेक नहीं किया जाता है,
लेकिन, अगर HUF भारत में रेजिडेंट है, तो इसके रेजिडेंशियल स्टेटस को आगे चेक करने के लिए कर्ता का भी रेजिडेंशियल स्टेटस चेक किया जाता है।
क्योकि, कर्ता का Residential Status चेक करने के बाद ही यह पता लगाया जा सकता है, कि HUF भारत में रेजिडेंट और सामान्य निवासी दोनों है या भारत में रेजिडेंट तो है, लेकिन भारत में सामान्य निवासी नहीं है।
कर्ता का residential status कैसे चेक किया जायेगा ?
HUF के कर्ता को भारत में सामान्य निवासी होने के लिए ऊपर बताई गयी 2 बेसिक कंडीशन में से 1 बेसिक कंडीशन को पूरा करना अनिवार्य होता है।
अगर, कर्ता एक या दोनों बेसिक कंडीशन को पूरा करता है, तो वह भारत में रेजिडेंट होगा। इसके बाद आगे का रेजिडेंशियल स्टेटस चेक करने के लिए यह देखा जायेगा कि कर्ता द्धारा 2 एडिशनल कंडीशंस में से कितनी एडिशनल शर्तो को पूरा किया जा रहा है।
Additional Conditions –
- कर्ता सम्बंधित फाइनेंसियल ईयर से पहले के 10 वर्षो में से कम से कम 2 वर्ष में भारत में रेजिडेंट रहा हो
और
- कर्ता सम्बंधित फाइनेंसियल ईयर से पहले के 7 वर्षो में से कम से कम 729 दिन भारत में रहा हो।
अगर कर्ता इन दोनों एडिशनल कंडीशन को पूरा करता है, तो वह भारत में रेजिडेंट और सामान्य निवासी माना जायेगा, और अगर कर्ता इन दोनों एडिशनल शर्तो में से एक या दोनों कंडीशंस को पूरा नहीं करता है, तो वह भारत में रेजिडेंट, लेकिन भारत में सामान्य निवासी नहीं माना जायेगा।
इन additional condition को पूरा करने के बाद जो भी कर्ता का स्टेटस आता है, वही HUF का रेजिडेंशियल स्टेटस माना जायेगा।
नोट : HUF का सबसे वरिष्ठ सदस्य HUF का कर्ता माना जाता है।
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Residential Status of Company –
कंपनी का रेजिडेंशियल स्टेटस चेक करने के लिए सबसे इम्पोर्टेन्ट कंडीशंस है,
- यह एक भारतीय कंपनी है, या
- कंपनी का इफेक्टिव मैनेजमेंट सम्बंधित फाइनेंसियल ईयर में भारत में हो
अगर कंपनी द्धारा इन दोनों में से एक भी कंडीशन पूरी होती है, तो उस कंपनी को भारत में रेजिडेंट माना जायेगा। दोनों में से एक भी कंडीशन पूरी नहीं होती है, तो कंपनी को भारत में नॉन रेजिडेंट माना जायेगा।
Residential Status of Firm/AOP/BOI –
FIRM/AOP/BOI को भारत में रेजिडेंट माना जायेगा, यदि इनके बिज़नेस का कण्ट्रोल और मैनेजमेंट पूरी तरह से (wholly ) या पार्टली भारत में हो।
और अगर बिज़नेस के कण्ट्रोल और मैनेजमेंट पूरी तरह से भारत के बाहर हो, तो इन्हे नॉन – रेजिडेंट माना जायेगा।
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