taxation of interest income | 5 टाइप्स के इंटरेस्ट जिन पर टैक्स लगाया जाता है

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taxation of interest income

taxation of interest income – क्या आप जानते है कि आपके द्वारा किये गए इन्वेस्टमेंट पर जो ब्याज आपको मिलता है, वह ब्याज इनकम टैक्स में आपकी इनकम माना जाता है और इस इनकम पर आपको टैक्स भी देना होता है।

आपके द्वारा किये गए इन्वेस्टमेंट पर मिलने वाले ब्याज को आपकी इनकम टैक्स रिटर्न में रिपोर्ट करना होता है,जहाँ यह ब्याज आपकी टोटल इनकम में शामिल हो जाता है और फिर स्लैब रेट के अनुसार इस पर टैक्स देना होता है।

अधिकतर टैक्सपेयर अपनी इनकम टैक्स रिटर्न फाइलिंग के समय अपनी इंटरेस्ट की इनकम को इसमें रिपोर्ट नहीं करते है, जिसकी वजह से उनकी आयकर रिटर्न गलत भी हो सकती है।

यह इंटरेस्ट की राशि आपको अलग – अलग इन्वेस्टमेंट टाइप्स से प्राप्त हो सकती है, जैसे – फिक्स्ड डिपाजिट इंटरेस्ट, सेविंग अकॉउंट इंटरेस्ट, ईपीएफ इंटरेस्ट, NSC इंटरेस्ट या कोई अन्य इंटरेस्ट।

ये सभी टाइप्स के इंटरेस्ट आपकी इनकम होती है, इसलिए इन्हे इनकम टैक्स रिटर्न में ” income from other source ” हेड में रिपोर्ट किया जाता है।

आज के आर्टिकल (taxation of interest income) में हम 5 अलग -अलग टाइप्स की ब्याज से होने वाली इनकम पर टैक्स से जुड़े रूल्स के बारे में चर्चा करेंगे।

नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट ( NSC ) में निवेश पर मिलने वाले इंटरेस्ट पर टैक्स लगाने से जुड़े नियम क्या है ?

NSC एक टैक्स सेविंग स्कीम है, जो कि सरकार द्वारा निवेश के लिए बनायीं गयी सबसे पुरानी स्कीमों में से एक है। यह स्कीम एक आम आदमी को मात्र 1000 रुपये की राशि के साथ निवेश करने की सुविधा देती है। इस स्कीम में निवेश पर आपको एक फिक्स्ड रेट से गारंटीड रिटर्न मिलता है और साथ ही इसमें निवेश पर सेक्शन 80C में टैक्स छूट भी प्राप्त होती है।

NSC में निवेश पर आपको एक सर्टिफिकेट दिया जाता है, इसलिए इसका नाम नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट भी है। परन्तु, आजकल इसमें निवेश पर आपको एक पासबुक दी जाती है , जिसमे NSC में किये गए निवेश, इंटरेस्ट रेट और maturity राशि लिखी हुई होती है।

नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट में निवेश पर 5 वर्ष का ” lock in period ” रहता है, जिस पर हर साल इंटरेस्ट दिया जाता है। यह इंटरेस्ट हर साल आपके प्रिंसिपल अमाउंट में जुड़ता जाता है और री-इन्वेस्ट होता रहता है। लेकिन, 5 वे वर्ष का इंटरेस्ट री-इन्वेस्ट नहीं होता है और आपको पूरी रकम 5 वर्ष की समाप्ति पर मिल जाती है।

NSC में मिलने वाला इंटरेस्ट टैक्सेबल होता है। इसको आयकर रिटर्न में रिपोर्ट किया जाता है और यह स्लैब रेट के आधार पर टैक्सेबल होता है।

लेकिन, NSC में निवेश पर सेक्शन 80C में टैक्स डिडक्शन दी जाती है, इसलिए हर साल री-इन्वेस्ट होने वाला ब्याज की आप सेक्शन 80C में टैक्स डिडक्शन क्लेम कर सकते है।

5 वें वर्ष का ब्याज री-इन्वेस्ट नहीं होता है, इसलिए इस पर आपको टैक्स देना होता है। यानि की NSC में शुरू के 4 वर्षो में मिलने वाले ब्याज की हम सेक्शन 80C में टैक्स डिडक्शन क्लेम कर सकते है, जबकि लास्ट ईयर का ब्याज री-इन्वेस्ट नहीं होने की वजह से टैक्स डिडक्शन के लिए एलिजिबल नहीं होता है।

NSC में निवेश के बारे में अधिक जाने – इन्वेस्टमेंट 

सेविंग अकॉउंट पर मिलने वाले ब्याज पर इनकम टैक्स के रूल्स –

आजकल अधिकतर लोगो के बैंको में सेविंग अकॉउंट होते है। लोग पैसो को सेव करने के लिए अपने पैसो को इसमें जमा करवाते है और बैंक बदले में इन जमा पैसो पर ब्याज देता है। बैंक द्वारा सेविंग अकॉउंट में आपके जमा पैसो पर 3 -6 % के आसपास ब्याज  दिया जाता है।

लेकिन, सेविंग अकॉउंट पर मिलने वाला ब्याज टैक्सेबल होता है और इसको इनकम टैक्स रिटर्न में रिपोर्ट करना अनिवार्य होता है। आजकल एनुअल इनफार्मेशन स्टेटमेंट (AIS ) के आने की वजह से बैंक इंटरेस्ट आटोमेटिक तरीके से आपकी आयकर रिटर्न में रिपोर्ट हो जाता है।

सेविंग अकॉउंट पर मिलने वाले इंटरेस्ट स्लैब रेट के आधार पर टैक्सेबल होता है। ध्यान रहिये सेविंग अकॉउंट इंटरेस्ट टैक्सेबल होता है, लेकिन इस पर किसी भी तरह का कोई टीडीएस नहीं काटा जाता है।

हालाँकि, सेविंग अकॉउंट के इंटरेस्ट की टैक्स में छूट ली जा सकती है।  यह छूट नॉन सीनियर सिटीजन द्वारा सेक्शन 80TTA में और सीनियर सिटीजन द्वारा सेक्शन 80TTB में क्लेम की जा सकती है।

नॉन सीनियर सिटीजन द्वारा अधिकतम 10 हजार और सीनियर सिटीजन द्वारा अधिकतम 50 हजार के सेविंग अकॉउंट इंटरेस्ट की टैक्स में छूट ली जा सकती है।

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फिक्स्ड डिपाजिट इंटरेस्ट पर टैक्स रूल्स। taxation of interest income

अधिकतर लोगों द्वारा बैंक में एफडी करवाना सबसे सुरक्षित और विश्वसनीय इन्वेस्टमेंट माना जाता है। एफडी में इन्वेस्टमेंट में एक फिक्स्ड रेट से इंटरेस्ट दिया जाता है, जो कि साल में एक बार दिया जाता है।

फिक्स्ड डिपाजिट पर मिलने वाला इंटरेस्ट भी टैक्सेबल होता है और इस पर स्लैब रेट के अनुसार टैक्स लगाया जाता है।

एफडी से मिलने वाले इंटरेस्ट पर टीडीएस रूल्स भी एप्लीकेबल होते है। अगर आपको मिलने वाला एफडी इंटरेस्ट एक फाइनेंसियल ईयर में 40 हजार से ज्यादा का होता है, तो इस पर 10 % की रेट से टैक्स काटा जाता है।

हालाँकि, यह इंटरेस्ट आपके ऊपर एप्लीकेबल स्लैब रेट के आधार पर टैक्सेबल होता है। अगर आप 10 % से ज्यादा की स्लैब रेट में आते है, तो बैलेंस टैक्स का पेमेंट आपको आयकर रिटर्न फाइलिंग के समय करना होगा।

जैसे – आपको एक वर्ष में 1 लाख का एफडी इंटरेस्ट मिलता है और इस पर 10 % टीडीएस बैंक द्वारा काट लिया गया है, लेकिन आप 30 % की स्लैब रेट में आते है, तो बाकी के टैक्स का पेमेंट आपको आईटीआर फाइलिंग के समय करना होगा।

एफडी इंटरेस्ट की सीनियर सिटीजन द्वारा सेक्शन 80TTB में टैक्स छूट क्लेम की जा सकती है। सेक्शन 80TTB में सीनियर सिटीजन द्वारा अधिकतम 50 हजार की टैक्स डिडक्शन क्लेम की जा सकती है, जो की सेविंग अकॉउंट और फिक्स्ड डिपाजिट के इंटरेस्ट को मिला कर होती है।

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इनकम टैक्स रिफंड पर मिलने वाले इंटरेस्ट पर टैक्स रूल्स –

कई बार टैक्सपेयर की किसी इनकम पर टैक्स काट लिया जाता है, लेकिन टैक्सपेयर की इनकम टैक्सेबल लिमिट से कम होने की वजह से इसका टैक्स रिफंड क्लेम कर लिया जाता है।

इस टैक्स रिफंड के अमाउंट पर इनकम टैक्स एक्ट 1961 में 0.50% की रेट से इंटरेस्ट भी दिया जाता है।

इनकम टैक्स रिफंड पर मिलने वाला ब्याज टैक्सेबल होता है और इसे इनकम टैक्स रिटर्न में रिपोर्ट करना अनिवार्य होता है। यह इंटरेस्ट स्लैब रेट के आधार पर टैक्सेबल होता है।

एम्प्लोयी प्रोविडेंट फण्ड (epf ) अकॉउंट पर मिलने वाले इंटरेस्ट पर टैक्स रूल्स –

एम्प्लोयी प्रोविडेंट फण्ड अकॉउंट में मिलने वाले इंटरेस्ट पर अभी तक कोई भी टैक्स नहीं लगाया जाता था, लेकिन बजट 2021 में फाइनेंस मिनिस्टर द्वारा EPF अकॉउंट के इंटरेस्ट को भी टैक्स के दायरे में ला दिया।

लेकिन, ई पी एफ अकॉउंट पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स के नए रूल उसी केस में लागू होंगे, जब एम्प्लोयी को EPF में कंट्रीब्यूशन 2.50 लाख से ज्यादा का है।

अगर एम्प्लोयी का कंट्रीब्यूशन एक फाइनेंसियल ईयर में 2.50 लाख से कम होता है, तो उसको मिलने वाला पूरा इंटरेस्ट टैक्स फ्री होगा। लेकिन, 2.50 लाख से ज्यादा कंट्रीब्यूशन होने के केस में सिर्फ 2.50 लाख तक के कंट्रीब्यूशन पर मिलने वाला ब्याज ही टैक्स फ्री होगा और 2.50 लाख से ज्यादा के कंट्रीब्यूशन पर प्राप्त इंटरेस्ट टैक्सेबल होगा।

ईपीएफ पर मिलने वाला इंटरेस्ट ” other source ” हेड की इनकम माना जाता है और इस पर स्लैब रेट के आधार पर टैक्स लगाया जाता है।

 

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