income tax basic knowledge – आज के समय में अधिकतर लोग इनकम टैक्स के बारे में जानना चाहते है , लेकिन वो यह निर्धारित नहीं कर पाते है की शुरुआत कहाँ से की जाये।
इनकम टैक्स को समझना मुश्किल नहीं है, अगर आप सही तरीके से इसे सीखना शुरू करते है।
इनकम टैक्स एक्ट को समझने के लिए सबसे पहले आपको कुछ बेसिक चीजों का मतलब पता होना चाहिए, क्योकि इनकम टैक्स में बार – बार इन चीजों का जिक्र होता है।
इसलिए आज के आर्टिकल (income tax basic knowledge) में हम कुछ बेसिक वर्ड्स के बारे में चर्चा करेंगे , जिनसे इनकम टैक्स को समझना आपके लिए और भी आसान हो जायेगा।
Table of Contents
रेजिडेंशियल स्टेटस –
किसी भी पर्सन पर टैक्स लगाने के लिए सबसे पहले उसका रेजिडेंशियल स्टेटस चेक किया जाता है, चाहे आप एक इंडिविजुअल हो, कंपनी हो या फिर huf .
रेजिडेंशियल स्टेटस का मतलब है की आप किस देश में रेजिडेंट है।
किसी देश का नागरिक होना और किसी देश का रेजिडेंट होना, दोनों अलग – अलग बातें है। यह जरुरी नहीं है कि कोई व्यक्ति जो भारत का नागरिक है , वह भारत में रेजिडेंट भी हो।
भारत में रेजिडेंट होने के लिए किसी भी पर्सन को इनकम टैक्स एक्ट 1961 में बताई गयी कंडीशंस पूरी करनी होती है। अगर ये कंडीशन पूरी नहीं होती है, तो वह पर्सन नॉन रेजिडेंट माना जायेगा।
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फाइनेंसियल ईयर और असेसमेंट ईयर
फाइनेंसियल ईयर (FY ) और असेसमेंट ईयर (AY ) 12 महीने का पीरियड होता है, जो कि 1 अप्रैल से शुरू होता है और 31 मार्च को खत्म होता है।
किसी भी पर्सन को फाइनेंसियल ईयर में कमाई गयी इनकम पर असेसमेंट ईयर में टैक्स देना होता है।
जैसे – अगर आपकी 1 अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020 के पीरियड में कोई इनकम होती है, तो इस CASE में आपका फाइनेंसियल ईयर 2019-20 होगा और असेसमेंट ईयर 2020-21 होगा।
2019 – 20 फाइनेंसियल ईयर में कमाई गयी इनकम पर आपको ASSEESMENT ईयर 2020-21 में टैक्स देना होगा।
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Gross Total Income and Taxable Income (income tax basic knowledge)
किसी भी पर्सन की इनकम को इनकम टैक्स एक्ट के अनुसार 5 हेड में अलग -अलग किया जाता है।
ये 5 हेड होते है –
- सैलरी
- हाउस प्रॉपर्टी
- बिज़नेस & प्रोफेशन
- कैपिटल गेन
- अन्य सोर्स
एक पर्सन की इनकम को सबसे पहले इन हेड में अलग -अलग किया जाता है और अंत में सब हेड की इनकम को जोड़ दिया जाता है। इन सब इनकम को जोड़ने के बाद जो अमाउंट आता है, उसे इनकम टैक्स की भाषा में ग्रॉस टोटल इनकम कहा जाता है।
Taxable Income –
gross total income निकालने के बाद एक पर्सन की टैक्सेबल इनकम निकाली जाती है। एक पर्सन द्धारा जो भी डिडक्शन क्लेम की जाती है, उनको gross total income से माइनस करने के बाद जो इनकम आती है, वह उस पर्सन की टैक्सेबल इनकम मानी जाती है।
इस टैक्सेबल इनकम पर इनकम टैक्स में बतायी गयी स्लैब रेट से टैक्स लगाया जाता है। इन सभी डिडक्शन की छूट इनकम टैक्स एक्ट में बताई गयी निर्धारित लिमिट में दी जाती है।
इनकम टैक्स डिडक्शन –
इनकम टैक्स एक्ट में एक पर्सन को कई तरह के खर्चो और इन्वेस्टमेंट की इनकम टैक्स में छूट दी जाती है, जिसे इनकम टैक्स की भाषा में इनकम टैक्स डिडक्शन कहा जाता है।
जैसे – जीवन बीमा, मेडिक्लेम, प्रोविडेंट फण्ड में कंट्रीब्यूशन आदि में इन्वेस्टमेंट की एक इंडिविजुअल को छूट दी जाती है। इसी तरह स्कूल फीस, डोनेशन, रेंट आदि खर्चो की भी इनकम टैक्स में डिडक्शन दी जाती है।
इन सभी डिडक्शन को gross total income में से माइनस किया जाता है।
इनकम टैक्स स्लैब/Basic Exemption Limit –
इनकम टैक्स एक्ट में एक व्यक्ति पर टैक्स लगाने के लिए एक मिनिमम अमाउंट निर्धारित किया गया है, जिसे इनकम टैक्स एक्ट की भाषा में basic exemption limit कहा जाता है।
अगर किसी व्यक्ति की इनकम basic exemption limit में बताई गयी इनकम से अधिक होती है, तो जितनी इनकम अधिक है उस पर टैक्स लगाया जायेगा।
बेसिक exemption लिमिट में बताई गयी रेट से इंडिविजुअल पर टैक्स लगाया जाता है। यह लिमिट एक व्यक्ति की उम्र के हिसाब से निर्धारित की जाती है, जैसे – 60 वर्ष से कम, 60 वर्ष से अधिक लेकिन 80 वर्ष से कम, 80 वर्ष से अधिक।
Person –
इनकम टैक्स में आपने देखा होगा कि अधिकतर जगह पर पर्सन लिखा हुआ होता है।
अगर इनकम टैक्स में किसी जगह पर्सन लिखा हुआ होता है, तो इसका मतलब इसमें वे सभी शामिल हो जायेंगे, जिन्हे पर्सन की डेफिनेशन में शामिल किया गया है।
पर्सन की डेफिनेशन में शामिल है –
- इंडिविजुअल
- कंपनी
- फर्म
- LLP
- लोकल अथॉरिटी
- गवर्नमेंट
- हिन्दू अनडिवाइडेड फॅमिली (HUF)
- AOP/BOI
अगर इनकम टैक्स में किसी जगह सिर्फ इंडिविजुअल की बात होती है, तो उसमे सिर्फ इंडिविजुअल ही कवर होगा, लेकिन अगर पर्सन की बात हो रही है तो उसमे ऊपर बताये गए सभी कवर होंगे।
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